Tuesday, December 3, 2019

डर रही हूँ मैं


यहीं चाहते थे न तुम की डर कर रहें हम हमेशा तुमसे तो सुनो
हाँ डर रही हूं मैं अब घर से निकलने से
हाँ डर रही हूँ मै अकेले चलने से
डर रही हूं मैं किसी पर भरोसा करने से
डर रही हूं मैं किसी को अपना कहने से
डर रही हूँ मैं इंसानो के बीच रहने से
डर रही हूं मैं बेटी होने से
डर रही हूं मैं किसी आदमी के साथ होने से
डर रही हूं मैं इस दुनियां के हर कोने से
जाने कहाँ कौन दुष्कर्मी मुझपर नजर लगाए बैठा होगा
जाने कब और कैसे वो मुझपर हमला कर देगा
डर रही हूं मैं किसी लड़के को जन्म देने से
डर रही हूं मैं पढ़ने लिखने जाने से
डर रही हूं मैं अब कंधे से कंधा मिलाने से
हर पल हर जगह बस अब डर ही मुझे सताता है
किस पल कोई मुझे नोंच डाले यह डर दिल को रुलाता है
तुम कामयाब हो गए साजिशों में अपनी
डर रही हूं मैं किसी लड़की के कोख में आने से
डर रही हूं मैं अपनी आन गवाने से








Sunday, June 30, 2019

पढ़े-लिखे दहेजि

जब देश के शिक्षित लोग  दहेज जैसी कुप्रथा को जायज़ बताते हुए दहेज की मांग करते हैं तो जहन में एक सवाल आता है क्या देश में वाकई शिक्षा का कोई महत्व बचा है?

हमारे माता पिता हमें पढ़ाने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं और इसके पीछे उनकी यही सोच होती है की शिक्षा की कमी के कारण जिस सम्मान से वे वंचित रहे हैं हम न रहें।हम अच्छे और बुरे  को समझें,सही गलत में फर्क कर सकने के योग्य बने।लेकिन ये महज बातें रह जाती है जब एक शिक्षित परिवार किसी परिवार में विवाह के लिए लड़की देखने जाते हैं और वहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं।और शिक्षा के सारे मूल्य तो तब खत्म हो जाते हैं जब हम अपने परिवार का विरोध करने की वजाय साथ देते हैं।मानते हैं की हमारे परिवार के कुछ बुजुर्ग वर्ग इसे जायज समझते हैं। लेकिन उन से ज्यादा दोषी तो हम हैं क्योंकि हमें बचपन से ही पढ़ाया जाता है की दहेज लेना देना अपराध है और इसके लिए सजा का प्रावधान भी है फिर हम उन्हें ये अपराध करने देते हैं और इसमे बाकायदा उनका साथ देते हैं।और समाज अगर सवाल उठाए तो कहते हैं बड़ों की बात में हमारा बोलना शोभा नहीं देता। तो अगर आप इतने ही मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो फिर क्यों अपने बड़ों को नहीं समझाते की यह बहुत बड़ा अपराध है। कई बार तो देखने में यह आता है की दूल्हा खुद दहेज की मांग करता है। और अब तो जितना पढ़ा लिखा लड़का है दहेज में उतनी ही मोटी रकम मांगी जाती है। विवाह को व्यापार बना लिया गया है और पढ़े लिखे दूल्हे को सबसे महँगी वस्तु जिसकी हैसियत हो अपनी बेटी के लिए खरीद ले।

ये तो हुई शिक्षित पक्ष के दहेज लोभियों की बात  लेकिन वधु पक्ष भी शिक्षा के मूल्यों को समाप्त कर देते है जब वे अपनी बेटी को दहेज लोभियों को सौपते हैं। उन्हें भी समझना चाहिए की हम एक अपराध करने जा रहे।विवाह दो परिवारों के बीच बना मधुर सम्बन्ध है कोई व्यापार नहीं।और  इस करके आप अपनी बेटी की योग्यता पर भी सवाल उठाते हैं।

एक शिक्षित व्यक्ति अगर शिक्षा के सही अर्थ को समझता होगा तो न तो दहेज लेगा और न ही दहेज देगा। दहेज मांगकर हम स्वयं ही अपने सम्मान को कम कर देते हैं।और दहेज देने वालों को भी यह समझना होगा की अगर कोई व्यक्ति आपकी बेटी से शादी करने के लिए दहेज की मांग कर रहा है तो फिर घर में रखने के लिए न जाने कब कब क्या क्या मांगे करेगा और मांगे पूरी न होने पर आपकी बेटी ही किसी अपराध का शिकार होगी।आप ऐसे घर में अपनी लाड़ली को क्यों भेजना चाहते हैं जहां वो सुरक्षित नहीं है।

Tuesday, June 25, 2019

तू न आना इस देश मेरी लाडो


             "जो बेटियों को इस दुनियां में लाने के लिए सबसे लड़ जाया करती थीं अब ऐसा क्या हुआ जो खुद वही मां उन्हें इस दुनिया में आने से रोकना चाहती है। "

एक मां की उसकी अजन्मी बेटी से बातचीत-
ओ लाडो में जानती हुं मैं भगवान से मिन्नतें मांगा  करती थी की वो मुझे एक प्यारी सी बेटी दे दें। जिसे में जी भर कर दुलार करूँ,उसे झूला झुलाऊँ,उसकी नन्हीं हथेलियों को लेकर अपने गालों में स्पर्श करूँ,जब वो रोने लगे तो अपनी गोद में उठाकर सीने से लगाकर उसे लोरियां सुनाऊँ,उसके बड़े होने पर उसे स्कूल भेजने के लिए उसकी चोटियां बनाऊं,और जब वो स्कूल से लाइ अपनी ढेर सारी बातों का पिटारा खोले तो उसके साथ बैठकर उसकी बातों को सुनती जाऊँ, फिर उसके बड़े होने पर अपनी परछाई को उसमें देखूँ,और उसके कामयाब होने पर सबको कहुं देखो बेटीयाँ बोझ नहीं होती माँ-बाप की शान होती हैं।लेकिन मेरी प्यारी लाडो अब में भगवान से दुआ मांगती हुं की इस दुनियां में फिर किसी लाडो को न भेजे,क्योंकि लाडो तेरी माँ तेरी रक्षा करने में खुद को असमर्थ पा रही है।इस दुनियां में ऐसा कोई मेरी कोख के सिबा मुझे औऱ कोई जगह तेरे लिए सुरिक्षत नजर नहीं आ रही। जहां दूध पीती बेटियां भी जालिमों का शिकार हो रही है वहां तुझे में कैसे सुरिक्षत रख पाऊँगी।इस जालिम जमाने में जहां दुष्कर्मी सिर्फ औरत के जिस्म को नौचना जानते हैं, जहां में भी असुरक्षा के भाव के साथ जी रही हुं तुझे कैसे इस दुनिया में आने दू।मैं जानती हुं तु मेरी कोख की दीवारों को चीरकर बाहर निकलना चाहती है, इस दुनियां में अपना अस्तित्व बनाना चाहती है लेकिन इस दुनियां में इंसान की तरह दिखने वाले हैवान न जाने कब तुझे अपना शिकार बना ले मैं ये सब नहीं देख पाऊँगी। फिर किससे इंसाफ की गुहार लगाउंगी,कौन सुनेगा मुझ अभागन की। इस दुनियां में जहां महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है वो सुरक्षित नहीं हैं, फिर कैसे में तुझे इस दुनिया में तेरे नन्हें कदम रखने दू। इस दुनियां में जहां घर के पालने में भी शायद तु सुरक्षित नहीं है कैसे और किस-किस से लड़ेगी तेरी माँ लाडो अब मेरी सारी हिम्मत टूट चुकी है। मैं जानती हुं ये संसार तेरी किलकारियों के बिना अधूरा और नीरस है,लेकिन तेरे जैसी कई  लाडो के साथ दुर्व्यवहार करने वाले पापियों के लिए यही सजा होनी चाहिए। मेरी आँचल सूना होने का दुख सह लूंगी में यह सोचकर की कम से कम मेरी लाडो असुरक्षित तो नहीं है।लाडो तु अपनी मां का कहना मानना और इस दुनिया में कभी मत आना।