Tuesday, January 7, 2020

अक्सर बच्ची बन जाती हूँ

चलो आज मैं अपना एक राज बताती हूँ
इतनी बड़ी होकर भी क्यूँ मैं अक्सर बच्ची बन जाती हूँ
बात ही कुछ ऐसी है जनाब चलो ये आपको भी समझाती हूँ
खुशी का ठिकाना नहीं रहता बच्चा गर बन जाओ अगर
सारी परेशानियों से फिर थोड़ी दूर सी हो जाती हूँ
बच्चों के साथ खेलकर फिर खुद मे एक बच्चा पाती हूँ
बच्चों की शरारतों में साथ देना,बचपन का एक अंश मैं वहां पाती हूँ
बच्चों के साथ बच्ची बनकर मैं बहुत खुश हो जाती हूँ
बचपन की गलियों में,मैं कई बार फिरसे घूम आती हूँ
बच्चे जब जिद करते हैं मेरे साथ खेलने की,खुद को उन्हें जरा व्यस्त बताती हूँ
पर एक दो बार से ज्यादा ये बहाना चल नहीं पाता मेरा
खुद ही उनके साथ खेलने तैयार हो जाती हूँ
सच कहूँ बहुत अच्छा लगता है निश्छल,निःस्वार्थी उन बच्चों के साथ वक्त बिताना
जहां खुद को खोकर मैं खुदको ही पाती हूँ
उनके साथ सैर सपाटे करना,टॉफियों के लड़ना
गुब्बारे से खेलना,घर के किसी कोने में छिप जाना
उनका भाग भाग कर पूरे घर को नाप लेना और
उनके पीछे मेरा लग जाना
मेरी वजह से उन्हें खुश होता देख खुद को खुशनसीब पाती हूँ
बस इसीलिए में अक्सर बच्ची बन जाती हूँ