अच्छी हूँ मैं माँ पर घर की याद आती है
भर जाता है पेट खाने से यहाँ के,पर
तृप्ति तो बस तेरे हाथों के खाने से आती है
यहां सब अच्छे हैं माँ सबके साथ घुलमिल
गई हूँ मैं
जैसे समझाया था तूने वैसे रम गई हूँ मैं
यहां देर से मिलती है चाय थोड़ी,
खाने में भी देरी हो जाती है
अब घर सर पर नहीं उठा सकती न यहाँ पर
और तूने ही सिखाया था थोड़ी बहुत देरी तो हो ही जाती है
जिस चीज से भागती थी घर में मैं
वो फिर मेरे पीछे पड़ी है
यहां कई जिम्मेदारियां सामने खड़ी है
अब नादान बनकर काम नहीं चलेगा समझ
गई हूँ मैं
तेरी सारी सीखों के साथ आराम से रह रही हूँ मैं
उठ जारी हूँ वक्त पर अब तेरे बिना जगाए
पढ़ लेती हूं बिना तेरे दीदी को बताए
तू फिक्र मत करना माँ ज्यादा मेरी
समझदार हो गई है बिटिया तेरी
होस्टल और घर मे फर्क समझने लगी हूँ
टाइम पर सोने और जागने लगी हूँ
वक्त की पाबंदी अब समझ आई है
कुछ दिन राते मायूसी में बिताई है
सबकी याद मुझे भी बहुत आई है
वैसे यहां birthday सेलिब्रेट करते हैं सबके
छोटी बड़ी खुशियों और दुख में सरीक होते हैं सबके
साथ देते हैं एक दूसरा का सब यहां
कभी मस्ती तो कभी,शांत रहते हैं यहां
सब अच्छा है माँ यहां बस
घर की थोड़ी याद आती है
तेरी हर छोटी मोटी सीख यहां काम आई है।
यहां समझदार बनना पड़ता है
सबसे मिलकर चलना पड़ता है
कभी कभी दो चार बाते सुनना पड़ता है
अपनी चीजों को सबके साथ सेयर करना होता है।
सबकुछ अच्छा है यहां माँ
बस घर की थोड़ी याद आती है......☺
Wednesday, December 5, 2018
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Ma see ek roti mango to wo do deti h
ReplyDeleteBhut khoob utara h hostel lyf ko apni kavita mein👍
ReplyDeleteVery nice di
ReplyDeleteVery nice poem. U Will become a successful poetry😊😊
ReplyDeleteNice dii
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteFeelings को बहुत खूबसूरती se शब्दों मे ढाला है। ��
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